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""चौदह सौ पचपन गये, चंद्रवार, एक ठाट ठये।जेठ सुदी बरसायत को पूनरमासी प्रकट भये।।''
""सकल जनम शिवपुरी गंवाया।मरती बार मगहर उठि आया।।''
""अबकहु राम कवन गति मोरी।तजीले बनारस मति भई मोरी।।''
""जौ काशी तन तजै कबीरातो रामै कौन निहोटा।''
"जाति जुलाहा नाम कबीराबनि बनि फिरो उदासी।'कबीर के एक पद से प्रतीत होता है कि वे अपनी माता की मृत्यु से बहुत दु:खी हुए थे। उनके पिता ने उनको बहुत सुख दिया था। वह एक जगह कहते हैं कि उसके पिता बहुत "गुसाई' थे। ग्रंथ साहब के एक पद से विदित होता है कि कबीर अपने वयनकार्य की उपेक्षा करके हरिनाम के रस में ही लीन रहते थे। उनकी माता को नित्य कोश घड़ा लेकर लीपना पड़ता था। जबसे कबीर ने माला ली थी, उसकी माता को कभी सुख नहीं मिला। इस कारण वह बहुत खीज गई थी। इससे यह बात सामने आती है कि उनकी भक्ति एवं संत- संस्कार के कारण उनकी माता को कष्ट था।
बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।
सुनि अंघली लोई बंपीर।इन मुड़ियन भजि सरन कबीर।।
"कहत कबीर सुनहु रे लोई।हरि बिन राखन हार न कोई।।'
""नारी तो हम भी करी, पाया नहीं विचार।जब जानी तब परिहरि, नारी महा विकार।।''
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